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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2021, Vol. 7, Issue 3, Part A

शैक्षिक दर्शन के परिप्रेक्ष्य में मीमांसा दर्शन की उपादेयता

रंजय कुमार पटेल

यद्यपि बींसवीं शताब्दी के एक नवयुवक के लिए दर्शन जैसी गम्भीर ज्ञानधारा पर कुछ भी लिखना कोई सहज कार्य नहीं है, फिर मीमांसा दर्शन तो और भी अधिक अगाध विचारशीलता, वैदिक अध्ययन, चिन्तन तथा मनन की अपेक्षा रखता है। तथापि वर्तमान समय में मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक अच्छे अध्ययन की आवश्यकता महसूस की गई ताकि शैक्षिक जगत के लोगों का ध्यान इस दर्शन विशेष की ओर आकर्षित किया जा सके। विदित है कि वैदिक काल से ही आचार्य एवं शिष्य एक दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं, जिसे वर्तमान शिक्षाशास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। मीमांसा दर्शन बहुत बड़ा विषय है, इसके एक-एक विषय पर अनेक स्वतन्त्र ग्रन्थ सृजित किये जा सकते हैं, जिसके तत्त्व को 5-10 पृष्ठ के एक लेख में रख देने का दावा करना अतिशयोक्ति के सिवा और कुछ नहीं है। यह एक ही विद्या अनेक विद्याओं का भण्डार है। हजारों उत्कृष्ट लेखकों के द्वारा भाष्य, टीका, वार्तिक आदि ग्रन्थों के रूप में इसका पोषण किया गया है। इस परिचयात्मक अध्ययन के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि मीमांसा दर्शन का आदि से अन्त तक अध्ययन कर लिया गया, फिर भी इतना अवश्य प्रयास किया गया है कि मीमांसा दर्शन के सम्बन्ध में कुछ सम्मति (महनीय विचार) स्थिर किया जा सके। अतः इस अध्ययन में संस्कृत साहित्य के आधार पर मीमांसा दर्शन के सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया गया है। आशा है कि इस अध्ययन का वर्तमान शैक्षिक जगत में स्वागत होगा।
Pages : 39-44 | 1094 Views | 590 Downloads


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How to cite this article:
रंजय कुमार पटेल. शैक्षिक दर्शन के परिप्रेक्ष्य में मीमांसा दर्शन की उपादेयता. Int J Sanskrit Res 2021;7(3):39-44.

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