महर्षि वाल्मीकि प्रणीत रामायण संस्कृत लौकिक साहित्य का आदि-महाकाव्य है। साहित्यिक विकास तथा भाषा के स्वरूप को समझने के लिए श्रीमद्वाल्मीकिरामायण का व्याकरणात्मक अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। संस्कृत वाङ्मय में अर्थावबोध का महत्त्व सर्वप्रधान है, अर्थ के ज्ञानाभाव में हम किसी भी पद अथवा वाक्य का सूक्ष्मतया अध्ययन करने में सक्षम नहीं हो सकते। अर्थबोध के ज्ञान की दृष्टि से शब्द को चार भागों में विभक्त किया गया है- यौगिक, रूढ, योगरूढ़ व यौगिकरूढ। जो शब्द ‘यथा नाम तथा गुण’ को प्रदर्शित करते हैं, वे यौगिक शब्द कहलाते हैं। इस शोधलेख में वाल्मीकि रामायण के प्रमुख यौगिक पदों का व्युत्पत्तिपरक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।