कर्मयोगी निःस्वार्थ भाव से संसार की सेवा के लिए ही सम्पूर्ण कर्म करता है। साधक तो उस सुख का मूल कारण निष्कामता को मानते हैं और दुःखों का कारण कामना को मानते हैं परन्तु संसार में आसक्त मनुष्य वस्तुओं की प्राप्ति से सुख मानते हैं और वस्तुओं की अप्राप्ति से दुःख मानते हैं। मनुष्य के लिए जो भी कर्तव्य कर्म का विधान किया गया है उसका उद्देश्य परम कल्याणस्वरूप परमात्मा को प्राप्त करना है। निष्काम कर्म से परमात्मा की प्राप्ति होती है। कर्मबंधन से मुक्त होने के लिए निष्काम कर्म करना होगा।