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International Journal of Sanskrit Research
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2019, Vol. 5, Issue 4, Part D

वैदिक वांग्मय में गणित विज्ञान की श्रुतिमूलकता

Dr. Chander Kant

वैदिक वांग्मय का मूलाधार वेद अपने गर्भ में असंख्य शास्त्रों एवं विद्याओं को पल्लवित एवं पुष्पित करता रहा है। वैदिक वांग्मय विश्व वांग्मय मे मूर्धन्य स्थान में सुशोभायमान है। इसके अन्तर्गत वेद अथवा संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद एवं वेदांग् सम्मिलित हैं। आधुनिक युग भौतिक प्रगति का युग है। मानव समाज का ढांचा आर्थिक है, और अर्थ या धन का आधार गणित है। व्यापार में तोल-भाव, लाभ-हानि, ब्याज, कमीशन, दलाली, सांझा, आयकर इत्यादि सभी में गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। रेखागणित, भूमिति, ज्यामिति, त्रिकोणमिति इत्यादि गणितीय विधियों का आरम्भ गणितीय प्रक्रियाओं को सरल रीति से समझने के लिए हुआ है। गणित का प्रयोग प्रत्येक कला और विज्ञान में हुआ है। चित्र कला का आधार रेखागणित है। संगीत कला में स्वरों का निर्देशन, तार की लम्बाईयों तथा कंपन संख्याओं से ही होता है। बांसुरी में सप्तक के स्वरों को उत्पन्न करने के लिए छेद गणित के अनुसार किए जाते हैं। पिंगल शास्त्र के गण शब्द की उत्पत्ति गणना से ही हुई है। भौतिक शास्त्र जिसने वेतार के तार आदि से युग परिवर्त्तन कर दिया है, पूर्णतः गणित पर अवलम्बित है। रेडियों की तरंगों की उपस्थिति सर्वप्रथम गणित द्वारा ही सिद्ध की गई। आकाशीय पिण्डों से सम्बन्धित अध्ययन शास्त्र ज्योतिषशास्त्र का आधार स्तम्भ गणित है। स्वयं ही प्रकृति भी गणितमय है। नियमानुसार हमारे जीवन का प्रत्येक क्षेत्र भी गणित पर आधारित है। वैदिक वांग्मय में गणित के प्रारम्भिक इतिहास के बारे में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य दृष्टिपथ होते हैं। यद्यपि वर्तमान समय में अध्ययन की विभिन्न शाखाओं में विशिष्टीकरण दृष्टिभूत हो रहा है, तथापि शास्त्रों में अंगागिभाव सम्बन्ध होने के कारण एक शास्त्र के ज्ञान के लिए अनेक शास्त्रों का सामान्य ज्ञान होना आवश्यक समझा जा सकता है।
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How to cite this article:
Dr. Chander Kant. वैदिक वांग्मय में गणित विज्ञान की श्रुतिमूलकता. Int J Sanskrit Res 2019;5(4):218-223.

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